शरीर में #वात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शरीर में #वात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

शरीर में #वात, #पित्त, #कफ, के लक्षण कारण

 आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व...

 


आयुर्वेद के अनुसार किसी भी तरह के रोग होने के 3 कारण होते हैं...

1. वात:- शरीर में गैस बनना।
2. पित्त:- शरीर की गर्मी बढ़ना।
3. कफ:- शरीर में बलगम बनना।

नोट:-
किसी भी रोग के होने का कारण एक भी हो सकता है और दो भी हो सकता है या दोनों का मिश्रण भी हो सकता है या तीनों दोषों के कारण भी रोग हो सकता है।

(1). वात होने का कारण -
गलत भोजन, बेसन, मैदा, बारीक आटा तथा अधिक दालों का सेवन करने से शरीर में वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
दूषित भोजन, अधिक मांस का सेवन तथा बर्फ का सेवन करने के कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
आलसी जीवन, सूर्यस्नान, तथा व्यायाम की कमी के कारण पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है जिसके कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
इन सभी कारणों से पेट में कब्ज (गंदी वायु) बनने लगती है और यही वायु शरीर में जहां भी रुकती है, फंसती है या टकराती है, वहां दर्द होता है। यही दर्द वात दोष कहलाता है।

(2). पित्त होने का कारण -
पित्त दोष होने का कारण मूल रुप से गलत आहार है जैसे- चीनी, नमक तथा मिर्चमसाले का अधिक सेवन करना।
नशीली चीजों तथा दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण पित्त दोष उत्पन्न होता है।
दूषित भोजन तथा केवल पके हुए भोजन का सेवन करने से पित्त दोष उत्पन्न होता है।
भोजन में कम से कम 75 से 80 प्रतिशत क्षारीय पदार्थ (फल, सब्जियां इत्यादि अपक्वाहार) तथा 20 से 25 प्रतिशत अम्लीय पक्वाहार पदार्थ होने चाहिए। जब इसके विपरीत स्थिति होती है तो शरीर में अम्लता बढ़ जाती हैं और पित्त दोष उत्पन्न हो जाता है।

(3). कफ होने का कारण -
तेल, मक्खन तथा घी आदि चिकनाई वाली चीजों को हजम करने के लिए बहुत अधिक कार्य करने तथा व्यायाम की आवश्यकता होती है और जब इसका अभाव होता है तो पाचनक्रिया कम हो जाती है और पाचनक्रिया की क्षमता से अधिक मात्रा में चिकनाई वाली वस्तुएं सेवन करते है तो कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।
रात के समय में दूध या दही का सेवन करने से कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।

वात, पित्त और कफ के कारण होने वाले रोग निम्नलिखित हैं-

वात के कारण होने वाले रोग -
अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।

पित्त के कारण होने वाले रोग -
पेट, छाती, शरीर आदि में जलन होना, खट्टी डकारें आना, पित्ती उछलना (एलर्जी), रक्ताल्पता (खून की कमी), चर्म रोग (खुजली, फोड़े तथा फुन्सियां आदि), कुष्ठरोग, जिगर के रोग, तिल्ली की वृद्धि हो जाना, शरीर में कमजोरी आना, गुर्दे तथा हृदय के रोग आदि।

कफ के कारण होने वाले रोग -
बार-बार बलगम निकलना, सर्दी लगना, श्वसन संस्थान सम्बंधी रोग (खांसी, दमा आदि), शरीर का फूलना, मोटापा बढ़ना, जुकाम होना तथा फेफड़ों की टी.बी. आदि।

वात से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

आहार चिकित्सा-
■ वात से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में रेशेदार भोजन (बिना पकाया हुआ भोजन) फल, सलाद तथा पत्तेदार सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

■ मुनक्का अंजीर, बेर, अदरक, तुलसी, गाजर, सोयाबीन, सौंफ तथा छोटी इलायची का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

■ रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खानी चाहिए तथा अपने भोजन में मक्खन का उपयोग करना चाहिए इसके फलस्वरूप वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

उपवास -
वात रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों या फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।

पित्त से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

आहार चिकित्सा
■ पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सब्जियों तथा फलों का रस पीना चाहिए।

■ पित्त रोग से पीड़ित रोगी को भूख न लग रही हो तो केवल फलों का रस तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए और सलाद का अपने भोजन में उपयोग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

■ रोगी व्यक्ति को पूरी तरह स्वस्थ होने तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

■ पित्त रोग से पीड़ित रोगी को खट्टी, मसालेदार, नमकीन चीजें तथा मिठाईयां नहीं खानी चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से पित्त रोग और बिगड़ जाता है।

■ पित्त के रोगी के लिए गाजर का रस पीना बहुत ही लाभकारी होता है, इसलिए रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में कम से कम 1 गिलास गाजर का रस पीना चाहिए।

शरीर में वात, पित्त, और कफ: लक्षण, कारण, और सन्तुलन के उपाय

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में तीन प्रमुख दोष होते हैं: वात, पित्त, और कफ। इन तीनों का सन्तुलन स्वास्थ्य का आधार है। जब इन दोषों में असन्तुलन होता है, तो बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। आइए इनके लक्षण, कारण, और संतुलन के उपायों को समझें।


1. वात दोष (Vata Dosha)

लक्षण:

  • शरीर में सूखापन (ड्रायनेस)
  • जोड़ों में दर्द और चटकने की आवाज
  • चिंता, तनाव, अनिद्रा
  • वजन का कम होना
  • पाचन संबंधी समस्याएँ जैसे गैस, कब्ज
  • हाथ-पैर ठंडे रहना

कारण:

  • अधिक परिश्रम, असन्तुलित दिनचर्या
  • ज्यादा हल्का और सूखा भोजन
  • अत्यधिक उपवास करना
  • ठंडे वातावरण में रहना

संतुलन के उपाय:

  • खाद्य पदार्थ: गर्म, तैलीय, पौष्टिक और भारी भोजन (घी, तिल का तेल, खजूर, बादाम)
  • पानी: हल्का गर्म पानी पीना
  • योग और व्यायाम: हल्का योग, जैसे वज्रासन, वृतासन
  • रोज़मर्रा की आदतें: समय पर भोजन करना, मसाज (अभ्यंग) तिल या नारियल के तेल से करना
  • जड़ी-बूटियाँ: अश्वगंधा, त्रिफला, सौंफ

2. पित्त दोष (Pitta Dosha)

लक्षण:

  • शरीर में अधिक गर्मी लगना
  • एसिडिटी, जलन, पाचन समस्या
  • गुस्सा, चिड़चिड़ापन
  • बालों का झड़ना और सफेद होना
  • त्वचा पर लाल दाने या खुजली

कारण:

  • तीखा, खट्टा, नमकीन भोजन अधिक खाना
  • धूप में ज्यादा समय बिताना
  • मानसिक तनाव
  • ज्यादा मिर्च-मसालेदार भोजन

संतुलन के उपाय:

  • खाद्य पदार्थ: ठंडा, मीठा और ताजा भोजन (दूध, घी, नारियल, खीरा)
  • पानी: ठंडा या सामान्य तापमान का पानी
  • योग और व्यायाम: शांतिदायक योगासन (शवासन, चंद्रभेदी प्राणायाम)
  • रोज़मर्रा की आदतें: ठंडी चीजों का सेवन, धूप से बचाव
  • जड़ी-बूटियाँ: शतावरी, चन्दन, मुलेठी, अमलतास

3. कफ दोष (Kapha Dosha)

लक्षण:

  • शरीर भारी और आलस्य महसूस होना
  • बलगम बनना और सर्दी-जुकाम
  • वजन बढ़ना
  • नींद अधिक आना
  • पाचन धीमा होना

कारण:

  • तैलीय, भारी और ठंडे भोजन का अधिक सेवन
  • ज्यादा सोना या आलस्य करना
  • व्यायाम की कमी

संतुलन के उपाय:

  • खाद्य पदार्थ: हल्का, गरम, मसालेदार भोजन (अदरक, काली मिर्च, शहद)
  • पानी: हल्का गर्म पानी
  • योग और व्यायाम: सक्रिय व्यायाम और तेज योगासन (सूर्य नमस्कार, कपालभाति)
  • रोज़मर्रा की आदतें: जल्दी उठना, नियमित व्यायाम
  • जड़ी-बूटियाँ: त्रिकटु (सौंठ, मरीच, पिप्पली), हल्दी

सामान्य आचरण (Lifestyle Practices):

  1. सन्तुलित भोजन: अपने दोष के अनुसार भोजन का चयन करें।
  2. नियमित दिनचर्या: समय पर सोना, उठना, और भोजन करना।
  3. ध्यान और प्राणायाम: मानसिक शांति और तनाव प्रबंधन के लिए।
  4. मौसम के अनुसार आदतें: गर्मियों में पित्त को शांत करें, सर्दियों में वात को और मानसून में कफ को संतुलित करें।
  5. डिटॉक्स: समय-समय पर शरीर की सफाई करें।

अगर आपके दोष का असंतुलन गंभीर है, तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें।

 

बाल झड़ने के प्रमुख कारण इलाज

*◆बालों के झड़ने का  इलाज◆*   बाल झड़ने के प्रमुख कारण  इलाज बाल झड़ने का कारण कई शारीरिक, मानसिक और पर्यावरणीय कारकों का परिणाम हो सकता है...