* गौमय वस्ते लक्ष्मी गौमुत्र धन्वंतरि *
पंचगव्य चिकित्सा आयुर्वेद का एक प्राचीन और विशेष चिकित्सा पद्धति है, जिसमें गाय से प्राप्त पांच मुख्य उत्पादों - दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का प्रयोग किया जाता है। इन पांचों तत्वों का उपयोग शरीर के रोगों को ठीक करने, शरीर को शुद्ध करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
पंचगव्य चिकित्सा के घटक:
- दूध: गाय का दूध पौष्टिक और ऊर्जा से भरपूर होता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ाने में सहायक है।
- दही: दही पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देता है।
- घी: गाय का घी मानसिक शक्ति, शारीरिक बल और शरीर की संरचना में सुधार करता है।
- गोमूत्र: गोमूत्र में एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक गुण होते हैं, जो शरीर को शुद्ध और स्वस्थ रखने में सहायक हैं।
- गोबर: गोबर का उपयोग त्वचा के रोगों के उपचार में किया जाता है और इसे कीटाणुनाशक माना जाता है।
पंचगव्य चिकित्सा का उपयोग और प्रभाव:
- पंचगव्य का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में किया जाता है, जैसे त्वचा रोग, पाचन संबंधी समस्याएं, कैंसर, हृदय रोग, और मधुमेह।
- यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, पाचन को सुधारता है, रक्त शुद्धि में सहायक होता है और विषैले तत्वों को बाहर निकालता है।
- इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा, पेस्ट, मलहम, या ड्रिंक के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।
क्या यह प्रभावी है?
पंचगव्य चिकित्सा परंपरागत रूप से भारत में उपयोग की जाती रही है और इसके प्रभावों के कई साक्ष्य हैं। हालांकि, इसके बारे में आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन सीमित हैं, लेकिन इसे शुद्धता, पोषण और प्रतिरक्षा में सुधार के रूप में प्रभावी माना जाता है। इसका उपयोग भारतीय आयुर्वेद और वैकल्पिक चिकित्सा में काफी लोकप्रिय है।
किस प्रकार की गायें इस चिकित्सा के लिए उपयुक्त हैं?
भारतीय पारंपरिक पंचगव्य चिकित्सा में अधिकतर देसी भारतीय नस्ल की गायों को प्राथमिकता दी जाती है, जैसे कि गिर, साहीवाल, राठी, और थारपारकर। यह माना जाता है कि इन गायों के उत्पाद (दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) में औषधीय गुण अधिक होते हैं।
अन्य नस्लों: विश्व में कई प्रजातियों की गायें पाई जाती हैं, परंतु आयुर्वेदिक पंचगव्य चिकित्सा में ज़्यादातर भारतीय नस्लों को ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इसका कारण यह है कि भारतीय गायों का पाचन और वातावरण से सामंजस्य बेहतर होता है, जिससे इनके उत्पाद अधिक औषधीय माने जाते हैं। हालांकि, अन्य नस्लों की गायों का पंचगव्य चिकित्सा में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन उनके उत्पादों की गुणवत्ता और औषधीय गुण भारतीय गायों के उत्पादों से अलग हो सकते हैं।
गौ मूत्र (देशी गाय का) के चमत्कारी गुण !*
आयुर्वेद
में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण
करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न
रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का
नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित
रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता
बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती
हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
*इसके कुछ गुण इस प्रकार गए हैं :-*
1.
गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु
नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें
नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट,
फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर
में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी सहायक है।
2.
गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ, वात व
पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को खत्म करने
वाला, बल-बुद्धि देने वाला बताया गया है, बल्कि यह आयु भी बढ़ाता है।
3.
पेट की बीमारियों के लिए गौमूत्र रामवाण की तरह काम करता है, इसे
चिकित्सीय सलाह के अनुसार नियमित पीने से यकृत यानि लिवर के बढ़ने की
स्थिति में लाभ मिलता है। यह लिवर को सही कर खून को साफ करता है और रोग से
लड़ने की क्षमता विकसित करता है।
4. 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।
1.
भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर,
7. प्रमेह, 8.मधुमेह, 9.कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लूलगना, 13.पीलिया,
14. खुजली, 15.मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17.कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19.
भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24.
बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30.
स्तनरोग, 31.छिहीरिया, 32. अनिद्रा।
5.
गौमूत्र को मेध्या और हृदया कहा गया है। इस तरह से यह दिमाग और हृदय को
शक्ति प्रदान करता है। यह मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की
रक्षा करता है और इन अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाता है।
6. इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है |
7.
कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेन्ट प्रयोग में लाए जाते है |
गौमूत्र में विद्यमान सोडियम,पोटेशियम,मैग्नेशियम,फास्फोरस,सल्फर आदि में
से कुछ लवण विघटित होकर रेडियो एलिमेन्ट की तरह कार्य करने लगते है और
कैंसर की अनियन्त्रित वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है | कैंसर कोशिकाओं
को नष्ट करते है | अर्क आँपरेशन के बाद बची कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता
है | यानी गौमूत्र में कैसर बीमारी को दूर करने की शक्ति समाहित है |
8. दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।
9.
गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है! इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता
है जो कीटाणु नासक है, यह किटाणु जनित रोगों का भी नाश करता है। गौमूत्र
चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है।
10.
जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम
मिलता है। सर्दियों के मौषम में इस परेशानी में सोंठ के साथ गौ मूत्र पीना
फायदेमंद बताया गया है।
11. गैस की शिकायत में प्रातःकाल आधे कप पानी में गौ मूत्र के साथ नमक और नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।
12. चर्म रोग में गौ मूत्र और पीसे हुए जीरे के लेप से लाभ मिलता है। खाज, खुजली में गौ मूत्र उपयोगी है।
13.
गौमूत्र मोटापा कम करने में भी सहायक है। एक ग्लास ताजे पानी में चार बूंद
गौ मूत्र के साथ दो चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित पीने
से लाभ मिलता है।
14. गौमूत्र का सेवन छानकर किया जाना चाहिए। यह वैसा रसायन है, जो वृद्धावस्था को रोकता है और शरीर को स्वस्थ्यकर बनाए रखता है।
15.
गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा
बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे
गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|
16.
अमेरिका में हुए एक अनुसंधान से सिध्द हो गया है कि गौ के पेट में
“विटामिन बी” सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है व विचारों में सात्विकता
लाता है।
17.
गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के
बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना
चाहिए|
18.
गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग
ग्रस्त नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी
होता है।
23.
देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘`प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है,
जो बारिस लाने में सहायक होती है| इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस
निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है |
24.
गोमुत्र कीटनाशक के रूप में भी उपयोगी है। देसी गाय के एक लीटर गोमुत्र को
आठ लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है । गोमुत्र के माध्यम से फसल
को नैसर्गिक युरिया मिलता है। इस कारण खाद के रूप में भी यह छिड़काव उपयोगी
होता है । गौमूत्र से औषधियाँ एवं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।
25.
अमेरिका ने गौ मूत्र पर ४ पेटेंट ले लिए हैं, और अमेरिकी सरकार हर साल
भारत से गाय का मूत्र आयात करती है और उससे कैंसर की दवा बनाती हैं । उसको
इसका महत्व समझ आने लगा है। जबकि हमारे शास्त्रो मे करोड़ो वर्षो पहले से
इसका महत्व बताया गया है।
धन्वंतरि आरोग्य के देव हैं और देशी गाय के मूत्र को धन्वंतरि कहा गया है आर्थत गौमुत्र सर्वरोगनाशक हैं।
आज इस लेख के द्वारा भाई राजीवदीक्षित जी लिखित पँचगगव्य चिकित्सा पुस्तक से गौमुत्र के प्रभावशाली उपयोग की जानकारी देने जा रहा हूँ ।
देशी गौमाता जो गर्भवती न हो उनका ही मुत्र औषधि हेतु सर्वोत्तम है। गौमुत्र को सेवन से पहले आठ तह सूती कपड़े से छानकर ही उपयोग करना चाहिये। स्वस्थ इंसान को 10 से 20 ml अस्वस्थ इंसान हेतु 50 ml से 100ml सुबह खाली पेट सेवन करना चाहिये। इसे ही नही किसी भी औषधि को 3 माह से ज्यादा लगातार सेवन नहीं करना चाहिये इससे ज्यादा दिनों तक सेवन की आवश्यकता हो तो कुछ दिनों का अंतर रख कर पुनः सेवन करना चाहिये।कब्ज से कैंसर हर रोग की रामबाण औषधि है गौमुत्र। गौमुत्र एलोवेरा व गंगाजल कभी भी खराब नहीं होता।
गौमुत्र में पाए जाने वाले रसायनिक तत्व व उनका रोगों पर प्रभाव
1. नाइट्रोजन :- मूत्रल,वृक्क का प्राकृतिक उत्तेजक,रक्त विषम्यता को निकलता है
2. गन्धक:- रक्त शोधक,बड़ी आँत की पुरः सरण क्रिया को बल मिलता है
3. अमोनिया:- शरीर धातुयो व रक्त संगठन को स्थिर करता है
4. अमोनिया गैस :- फेफड़े व श्वसन अंगों को संक्रमण से बचाता है
5. तांबा:- अनुचित मेद बनने से रोकता व शरीर को जीवाणुओं से बचाता है
6. आयरन :- रक्त में उचित लाल कणों को बनाये रखना व कार्य शक्ति को स्थिर रखना
7. यूरिया :- मुत्र उत्सर्ग पर प्रभाव व कीटाणु नाशक
8. यूरिक एसिड:- हृदय शोथ नाशक, मूत्राल होने से विष शोधक
9. फॉस्फेट :- मूत्रवाही संस्थान से पथरी कण निकालने में सहायक
10. सोडियम :- रक्त शोधक, अम्लता नाशक
11. पोटैशियम :- आमवात नाशक शुद्ध कारक, मांसपेशियों में दौर्बल्य, आलस्य नाशक
12. मैंगनीज :- कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकना व गैंगरीन,संड़ाध से बचाता है
13. कार्बोलिक एसिड :- कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकना व गैंगरीन,संड़ाध से बचाता है
14. कैल्शियम :- रक्त शोधक,अस्थि पोषक,जंतुघ्न, रक्त स्कंदक
15. नमक :- दूषित व्रण, नाडी व्रण, मधुमेह जन्य सन्यास,विषम्यता, अम्लरक्तता नाशक,जंतुघ्न
16. विटामिन ए बी :- जीवनीय तत्व,उत्त्साहस्फुर्ती बनाये रखना, घबराहट प्यास से बचना,अस्थि पोषक,प्रजनन शक्तिदाता
17. अन्य मिनरल्स :- रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना
18. दुग्ध शर्करा :- तृप्ति रहती है,मुख शोष, हृदय को बल व स्वस्थ , प्यास घबराहट को मिटाता है
19. एंजाइम्स :- पाचकरस बनाना व रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना
20. जल :- जीवनदाता,रक्त को तरल व तापक्रम को स्थिर रखना
21. हिप्यूरिक एसिड :- मुत्र के द्वारा विष को बाहर निकलना
22. क्रिएटिनिन :- जंतुघ्न है
23. हार्मोन्स :- आठ मास की गर्भवती गौ माता के मूत्र में हार्मोन्स ही होते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक है
24. स्वर्णक्षार :- जंतुघ्न रोग निरोधक शक्ति बढ़ता है
गौमुत्र का घरेलू उपयोग :-
1 कब्ज व उदर शुद्धि हेतु
2 जो सीधे गौमुत्र नही ले सकते उन्हें गौमुत्र में हरड़े चूर्ण को भिगोकर धीमी आंच पर पकाये जब जलीय तत्व नष्ट हो जाये तो इस चूर्ण का उपयोग करने से गौमुत्र का लाभ मिलता है
3 जीर्णज्वर,पाण्डु, सूजन में चिरायते के पानी मे गौमुत्र मिलाकर 7 दिन सुबह शाम
4 खाँसी दमा जुकाम आदि विकारों में सीधे गौमुत्र
5 पाण्डु रोग में ताजा स्वच्छ सुबह खाली पेट एक माह ( इस मुत्र में लौह बारीक चूर्ण मिलाकर अच्छी तरहः छानकर सेवन से जल्दी लाभ होता है)
6 बच्चों की खोखली खाँसी में हल्दी मिलाकर
7 उदर के सभी रोग हेतु
8 जलोदर रोगी को गौदुग्ध व गौमुत्र में शहद मिलाकर
9 शरीर सूजन में सिर्फ दूध व मुत्र का सेवन करें भोजन नही
10 गौमुत्र में नमक शक्कर बराबर मिलाकर सेवन से उदर रोग शमन होता है
11 गौमुत्र में सेंधानमक ब राई चूर्ण मिला कर सेवन से उदर रोग नष्ट होता है
12 आखो की जलन,कब्ज,सुस्ती व अरुचि में गौमूत्र के साथ शक्कर
13 खाज खुजली में गौमूत्र में अम्बा हल्दी मिलाकर
14 प्रसूति के बाद सुवा रोग में
15 चर्म रोग में हरताल बाकुची मालकांगनी का पेस्ट गौमूत्र युक्त लेप
16 सफ़ेद दाग मे बाकुची मालकांगनी गौमूत्र युक्त लेप
17 सफेद दाग बाकुची के बीज का लेप गौमूत्र युक्त
18 खुजली होने पर गौमूत्र के मालिश व बाद में स्नान
19 कृष्णजरिक को गौमूत्र में पीसकर शरीर पर मालिश से चर्म रोग हेतु
20 यकृत व पलीहा के सूजन में ईंट को तपाकर गौमूत्र में बुझाकर सेक करनी चाहिये 21 कृमि रोग में डिकामली का चूर्ण गौमूत्र के साथ
22 सुवर्ण,लोहवत्सनाभ,कुचला ,शिलाजीत को शुद्ध व इनके भस्म बनाने हेतु उपयोग होता है
23 चर्मरोग में उपयोगी महामृच्यादी तेल,पंचगव्य नासिका धृत,पंचगव्य धृत व सभी पंचगव्य औषधि निर्माण हेतु उपयोग किया जाता है
24 फाइलेरिया ( हाथीपांव) रोग हेतु सुबह खलिपेट सेवन
25 गौमुत्र का क्षार उदर वेदना,मूत्रारोध,वायु व अनुलोमन में दिया जाता है
26 बालो की हर समस्या हेतु सर में मालिश कर थोड़ी देर बाद धोने से (झड़ना,डैंड्रफ,सफेद,रूखे) नष्ट होता है
27 कमला रोग में अतिउपयोगी होता है
28 गौमुत्र में पुराना गुड़ हल्दी मिलाकर सेवन से कुष्ठ,चर्म व हाथीपांव रोग सेवन से आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं
29 गौमुत्र के साथ अरण्ड का तेल पीने से एक माह सन्धिवात व अन्य वातविकार के रोग नष्ट हो जाता है
30 बच्चो के उदर वेदना पेट फूलने में गौमुत्र में नमक मिलाकर सेवन करना चाहिये
31 बच्चो के सूखा रोग में एक माह तक गौमुत्र में केशर मिलाकर सेवन कराना चाहिये
32 खाज खुजली चर्म रोग में गौमुत्र में निम के पत्ते की चटनी पीस कर लगाना चाहिये
33 क्षय रोग में गौमुत्र व गोबर की गंध से इसके जंतु नष्ट होते है व क्षय रोगियों को गौमुत्र का नियमित सेवन करना चाहिये
34 सभी प्रकार के चर्म रोग, घाव गैंगरीन जैसे व मधुमेह रोगी के जख्म में गौमुत्र में गेंदे के फूल की पंखुडी हल्दी का लेप अतिउपयोगी सिद्ध होता है( भाई राजीवदीक्षित जी के अनुभव व सलाह से एक महिला का कैंसर ग्रसित स्तन का जख्म पूर्णतः ठीक हो गया था )
35 नयन रोग व कान के रोग में लाभकारी
36 हर स्वस्थ व अस्वस्थ इंसान को नियमित गौमुत्र का सेवन करना चाहिये इससे शरीर में स्फूर्ति,भूख व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है व रक्त का दबाब सामान्य रहता है।
स्वस्थ भारत समृद्ध भारत निर्माण में एक पहल
भाई राजीवदीक्षित जी को समर्पित
वन्देमातरम जय गौमाता
पंचगव्य क्या है ?
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध (गोदुग्ध), दही (गोदधि), घी (गोघृत),
मूत्र (गोमूत्र), एवं गोबर (गोमय) के विशेष अनुपात के सम्मिश्रण से किया
जाता है। पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से
प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।
पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। पांचों
का सम्मिश्रण कर यदि विधि पूर्वक उसका प्रयोग किया जाए तो यह हमारे आरोग्य
और स्वास्थ्य के लिए रामबाण हो जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक
क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है । पंचगव्य के घटक पंचगव्य का
प्रत्येक घटक अपने में पूर्ण, महत्त्वपूर्ण गुणों से संपन्न और चमत्कारिक
है।
( १ ) गाय का दूध (गोदुग्ध) :- इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और
संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर,
शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।
( २ ) गाय का दही (गोदधि) :- गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों
से भरपूर है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो भूख
को बढ़ाने में सहायता करते हैं। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और
पित्त का नाश करने वाला होता है। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय
संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है।
( ३ ) गाय का घी (गोघृत) :- गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए
उपयोगी है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए
किया जाता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
(४ ) गाय का मूत्र (गोमूत्र) :- महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु
तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक
प्रमुख हैं। गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक
दृष्टि से देखने पर इसमें नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व,
यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड,
कैल्सियम, क्लोराइड, नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज,
हिप्पुरिक अम्ल, क्रियेटिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते
हैं। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से
बचाया जा सकता है। गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग,
मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण
का काम करता है।
(५ ) गाय का गोबर (गोमय) :- गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक
पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है। यह दुर्गंधनाशक,
पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती
है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है। गाय के गोबर का
चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की
खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है। पंचगव्य का
निर्माण सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त होती
हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव के लिए
जरूरी सभी तत्त्व पायें जाते है।
अपने जीवन में गौ माता जितना लेती हैं उससे सैकड़ो गुना हमको देती है। ये
कत्लखाने हमारे लिए और हमारे देश के लिए कलंक हैं, अगर हम इनको बंद नही
करा पाते है तो हमारा यह पूरा जीवन ही व्यर्थ है।
आज का वेद मंत्र
ओ३म् स्वस्ति मित्रावरूणा स्वस्ति पथ्ये रेवति। स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि ( ऋग्वेद ५|५१|१४ )
अर्थ
:- प्राण और उदान वायु सुखकर हो, वायु और विद्युत् हमारे लिए कल्याण करें,
धनयुक्त बड़े मार्ग हमें सुख देने वाले हो। ज्ञानमय अखण्डित परमेश हमारा
सदा कल्याण करें।
देशी गाय का गौमूत्र आैर गौमूत्र से बने अर्क का प्रयोग सदियों से जीर्ण
व्याधियों को ठीक करने में किया जा रहा है। खतरनाक व भयंकर असाध्य रोग
कैंसर के उपचार के लिए दुनिया भर में शोध चल रहे हैं लेकिन अभी तक कोई
सफलता नही मिली है पर अब सदियों से इस्तेमाल हो रहे गौमूत्र ने एक नई राह
दिखाई है ।
गौमूत्र को आयुर्वेद में त्रिदोष (वात-पित-कफ) शामक माना गया है। इन सभी
को खत्म करने की शक्ति गौमूत्र में है। गौमूत्र को प्राचीन ग्रंथ आैर
आयुर्वेद के जानकार कैंसर ( जिसे पुराने आयुर्वेद के ग्रंथो में अबुर्द के
नाम से जाना जाता था ) के उपचार में कारगर मानते थे। अब धीरे धीरे
#आयुर्वेद का यह मत #वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा उतरता नजर आ रहा है ।
गुजरात जूनागढ़ कृषि यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा अलग-अलग
शोध किए जाते हैं। बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सह संशोधक वैज्ञानिक डॉ.
रूकमसिंह तोमर, डॉ. श्रद्धाबेन भट्ट, डॉ. कविताबेन जोशी ने गोमूत्र पर
महत्वपूर्ण शोध किया है। शोध में गोमूत्र के अर्क में चार प्रकार के कैंसर
के कोश को नष्ट करने की क्षमता पाई गई है।
वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रजाति की गायों के मूत्र का नमूना लेकर उस पर
प्रयोग किए। शोध में यह पाया गया कि गोमूत्र के रोजाना सेवन करने से 3000
से 3500 कैंसर के कोश नष्ट होते हैं। वर्तमान में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरापी
खर्चीले और दुष्प्रभावी हैं। गोमूत्र के अर्क के सेवन का असर कैंसर से
प्रभावित हिस्से पर ही होता है । 24 घंटे में कितने कोश नष्ट हो सकते हैं
यह मरीज की रोग प्रतिकारक क्षमता पर भी कम हो सकती है। गोमूत्र के अर्क का
सेवन कई लोग नही कर पाते इसे ध्यान में रखते हुए जल्द ही गोमूत्र का पाउडर
और गोली बनाने पर विचार किया जा रहा है।
इस शोध के बदले कृषि यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. एआर पाठक, डॉ. वीपी
चोवटिया, डॉ. पीवी पटेल, डॉ. बीए गोलकिया ने वैज्ञानिकों को अभिनंदन दिया
है । http://dhunt.in/4lhEq?s=a&ss=wsp
गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24
ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म
किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते
हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना
रहता है।
गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु
नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें
नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट,
फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर
में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी सहायक है।
*गौ मूत्र की महत्ता*
*1.* कैंसर रोधक #टेक्सोल पेव #टीटेक्सेल को #अमेरिका से पेटेन्ट भी कराया है जोकि #कैंसर रोधक है।
*2.* रोम में #गौमूत्र की महत्ता इतनी अधिक बढ़ रही थी कि वहां गौमूत्र पर कर भी लगाने का वर्णन है।
*3.* यूरोप के देशों में 18वीं शताब्दी में #गौमूत्र से पीलिया, गठिया,
साइटिका, अस्थमा, धात , इन्फ्लूएजा आदि रोगों के निदान का विस्तृत वर्णन
है।
*4.* चीन में हर्बल औषधियों में गौमूत्र के सहपान का वर्णन है।
*5.* #अमेरिका के #डाॅक्टर #क्राफोड है मिल्टन के अनुसार गौमूत्र के
प्रयोग से ह्रदय के रोग दूर होता है। कुछ दिन गौमूत्र सेवन से #रक्तचाप ठीक
होता है, #भूख बढ़ती है तथा किडनी सम्बन्धी रोगों में लाभ होता है।
*6.* गौमूत्र रक्त में बहने वाले #कीटाणुओं का नाश करता है ।
*8.* गौमूत्र घावों की विशाक्तता को दूर करता है तथा #स्वास्थ्य पर
सकारात्मक प्रभाव पड़ता है गौमूत्र 100 से अधिक रोगों के पूर्ण निदान में
प्रभावी है।
*9.* गौमूत्र अर्क के #कैंसर रोधी गुण पर पेटेन्ट संख्या यू0एस0-6410056 प्राप्त हुआ है।
*10.* गौमूत्र रक्त व विष की विकृति को हटाता है, बडी आंत में गति को
शक्ति देता है, शरीर में वात पित व कफ #दोष को स्थिर रखने में सहयोग करता
है।
*11.* यह अनिच्छित व #अनावश्यक वसा को निर्मित होने से रोकता है, लाल रक्त
कोशिकाओं एवं #होमेयोग्लोबिन के उत्पादन में सन्तुलन रखता है।
*12.* यह जीवाणुनाशी व #मूत्रवर्धक होने से विष (टोक्सिन) को नष्ट करता
है, मूत्र मार्ग से पथरी को हटाने में सहायक है, #रक्तशुद्धि करता है।
*13.* यह तेजाब विहीन, वंशानुगत गठिया रोग से मुक्त करता है। आलस्य व
मांसपोशियों की कमजोरी को हटाता है, कीटाणुनाशक, कीटाणु की #वृद्धि को
रोकता है। (गेन्गरीन) मांस सड़ाव से रक्षा करता है।
*14.* यह #रक्तशुद्धिकर्ता अस्थि में शक्ति प्रदाता (कीटाणुनाशक) रक्त में #तेजाबी अव्यवों को कम करता है ।
*15.* यह जीवन में शक्ति व उत्साह वृधन में #सक्रियता लाता है व मानसिक
रूग्णता व प्यास से बचाता हैं अस्थि में पुनः शक्ति प्रदान कर जीवन में
उमंग वृद्धि करते हुए पुनरोत्पादक शक्ति प्रदान करता है।
*16.* यह रोग प्रतिरोधात्मक #शक्ति #वर्द्धक, हृदय को शक्ति व संतोष प्रदान करता है।
गौमूत्र कि कितनी भी महत्ता लिखे वे कम पड़ेगी इसलिए आप समझ सकते है कि हर रोग मिटाने के लिए गोमूत्र का सेवन काफी है।
गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग
ग्रस्त नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी
होता है।
20 मिली गौमूत्र छानकर प्रातः खाली पेट पीना चाहिए ।
भारतवासियों आप भी गौ उत्पादक की महत्ता समझकर उपयोग करके #स्वस्थ्य रहे
और #गौ हत्या रोकने तथा देश को #समृद्ध बनाये रखने में सहभागी होइए ।
*कचनार की छाल में अर्बुद (ट्यूमर) को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है*
(विभिन्न सोर्स से किया गया संकलन आपके समक्ष पेश क़र रहा हूँ)
कचनार का सेवन अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है।
गाँठ किसी भी तरह की हो –
शरीर के किसी भी हिस्से में उठने वाली कोई भी गठान या रसौली एक असामान्य लक्षण है जिसे गंभीरता से लेना आवश्यक है। ये गठानें पस या टीबी से लेकर कैंसर तक किसी भी बीमारी की सूचक हो सकती हैं। गठान अथवा ठीक नहीं होने वाला छाला व असामान्य आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
ज़रूरी नहीं कि शरीर में उठने वाली हर गठान कैंसर ही हो। अधिकांशतः कैंसर रहित गठानें किसी उपचार योग्य साधारण बीमारी की वजह से ही होती हैं लेकिन फिर भी इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार की किसी भी गठान की जाँच अत्यंत आवश्यक है ताकि समय रहते निदान और इलाज शुरू हो सके।
चूँकि लगभग सारी गठानें शुरू से वेदना हीन होती हैं इसलिए अधिकांश व्यक्ति नासमझी या ऑपरेशन के डर से डॉक्टर के पास नहीं जाते। साधारण गठानें भले ही कैंसर की न हों लेकिन इनका भी इलाज आवश्यक होता है। उपचार के अभाव में ये असाध्य रूप ले लेती हैं, परिणाम स्वरूप उनका उपचार लंबा और जटिल हो जाता है। कैंसर की गठानों का तो शुरुआती अवस्था में इलाज होना और भी ज़रूरी होता है। कैंसर का शुरुआती दौर में ही इलाज हो जाए तो मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
आपके शरीर मे कहीं पर भी किसी भी किस्म की गांठ हो। उसके लिए है ये चिकित्सा चाहे किसी भी कारण से हो सफल जरूर होती है। कैंसर मे भी लाभदायक है।
आप ये दो चीज पंसारी या आयुर्वेद दवा की दुकान से ले ले:-
कचनार की छाल
गोरखमुंडी
वैसे यह दोनों जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाती हैं पर यदि कचनार की छाल ताजी ले तो अधिक लाभदायक है। कचनार (Bauhinia purpurea) का पेड़ हर जगह आसानी से मिल जाता है।
इसकी सबसे बड़ी पहचान है – सिरे पर से काटा हुआ पत्ता । इसकी शाखा की छाल ले। तने की न ले। उस शाखा (टहनी) की छाल ले जो 1 इंच से 2 इंच तक मोटी हो । बहुत पतली या मोटी टहनी की छाल न ले।
गोरखमुंडी का पौधा आसानी से नहीं मिलता इसलिए इसे जड़ी बूटी बेचने वाले से खरीदे ।
केसे प्रयोग करे :-
कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट ले। 1 गिलास पानी मे उबाले। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमे 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई ) डाले। इसे 1 मिनट तक उबलने दे। छान ले। हल्का गरम रह जाए तब पी ले। ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है। गांठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ी हुई हो, जांघ के पास की गांठ हो, काँख की गांठ हो गले के बाहर की गांठ हो , गर्भाशय की गांठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनो मे गांठ हो या टॉन्सिल हो, गले मे थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goiter) या LIPOMA (फैट की गांठ ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार ले। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 20-25 दिन तक कोई लाभ नहीं होगा निराश होकर बीच मे न छोड़े।
गाँठ को घोलने में कचनार पेड़ की छाल बहुत अच्छा काम करती है. आयुर्वेद में कांचनार गुग्गुल इसी मक़सद के लिये दी जाती है जबकि ऐलोपैथी में ओप्रेशन के सिवाय कोई और चारा नहीं है.
*【कंजूसी न करें अगर सम्भव हो तो शेयर करे】Please read also in english and share it.*
पपीता पपीता पपीता
वाह रे पपीता
पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म,
पपीते के पत्ते 3rd और 4th स्टेज के कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।
अभी तक हम लोगों ने सिर्फ पपीते के पत्तों को बहुत ही सीमित तरीके से उपयोग किया होगा, बहरहाल प्लेटलेट्स के कम हो जाने पर या त्वचा सम्बन्धी या कोई और छोटा मोटा प्रयोग, मगर आज जो हम आपको बताने जा रहें हैं, ये वाकई आपको चौंका देगा, आप सिर्फ 5 हफ्तों में कैंसर जैसी भयंकर रोग को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।
ये प्रकृति की शक्ति है और बलबीर सिंह शेखावत जी की स्टडी है जो वर्तमान में as a Govt. Pharmacist अपनी सेवाएँ सीकर जिले में दे रहें हैं।
आपके लिए नित नवीन जानकारी कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है।
विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है। तो आइये जानते हैं उन्ही से।
University of florida ( 2010) और International doctors and researchers from US and japan में हुए शोधो से पता चला है की पपीता के पत्तो में कैंसर कोशिका को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है।
Nam Dang MD, Phd जो कि एक शोधकर्ता है, के अनुसार पपीता की पत्तियां डायरेक्ट कैंसर को खत्म कर सकती है, उनके अनुसार पपीता कि पत्तिया लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती है जिनमे मुख्य है।
breast cancer, lung cancer, liver cancer, pancreatic cancer, cervix cancer, इसमें जितनी ज्यादा मात्रा पपीता के पत्तियों की बढ़ाई गयी है, उतना ही अच्छा परिणाम मिला है, अगर पपीता की पत्तिया कैंसर को खत्म नहीं कर सकती है लेकिन कैंसर की प्रोग्रेस को जरुर रोक देती है।।
तो आइये जाने पपीता की पत्तिया कैंसर को कैसे खत्म करती है?
1. पपीता कैंसर रोधी अणु Th1 cytokines की उत्पादन को ब़ढाता है जो की इम्यून system को शक्ति प्रदान करता है जिससे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।
2. पपीता की पत्तियों में papain नमक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है।
Papain blood में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है, chemotheraphy / radiotheraphy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotheraphy में immune system को दबाया जाता है जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है, chemotheraphy और radiotheraphy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।
सबसे बड़ी बात के कैंसर के इलाज में पपीता का कोई side effect भी नहीं है।।
कैंसर में पपीते के सेवन की विधि :
कैंसर में सबसे बढ़िया है पपीते की चाय। दिन में 3 से 4 बार पपीते की चाय बनायें, ये आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाली है। अब आइये जाने लेते हैं पपीते की चाय बनाने की विधि।
1. 5 से 7 पपीता के पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुखा ले फिर उसको छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लो आप 500 ml पानी में कुछ पपीता के सूखे हुए पत्ते डाल कर अच्छी तरह उबालें।
इतना उबाले के ये आधा रह जाए। इसको आप 125 ml करके दिन में दो बार पिए। और अगर ज्यादा बनाया है तो इसको आप दिन में 3 से 4 बार पियें। बाकी बचे हुए लिक्विड को फ्रीज में स्टोर का दे जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर ले। और ध्यान रहे के इसको दोबारा गर्म मत करें।
2. पपीते के 7 ताज़े पत्ते लें इनको अच्छे से हाथ से मसल लें। अभी इसको 1 Liter पानी में डालकर उबालें, जब यह 250 ml। रह जाए तो इसको छान कर 125 ml. करके दो बार में अर्थात सुबह और शाम को पी लें। यही प्रयोग आप दिन में 3 से 4 बार भी कर सकते हैं।
पपीते के पत्तों का जितना अधिक प्रयोग आप करेंगे उतना ही जल्दी आपको असर मिलेगा। और ये चाय पीने के आधे से एक घंटे तक आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है।
कब तक करें ये प्रयोग वैसे तो ये प्रयोग आपको 5 हफ़्तों में अपना रिजल्ट दिखा देगा, फिर भी हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने का निर्देश देंगे। और ये जिन लोगों का अनुभूत किया है उन लोगों ने उन लोगों को भी सही किया है, जिनकी कैंसर में तीसरी और चौथी स्टेज थी।
यह संदेश सभी को शेयर करने कि नम्र विनंती है!
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