वे सनातनी परम्पराएं हिन्दू परम्पराएं कौन सी हैं जो चिकित्सा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समाज के लिए सही पायी गयी है?
सनातनी और वैज्ञानिक परम्पराएं
सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में अनेक परंपराएँ और रीति-रिवाज शामिल हैं, जो न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी हैं, बल्कि चिकित्सा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समाज के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती हैं। इनमें से कई परंपराओं को आधुनिक विज्ञान ने भी समर्थित किया है। यहाँ कुछ प्रमुख सनातनी परंपराएँ दी गई हैं जो वैज्ञानिक और चिकित्सा दृष्टिकोण से सही पाई गई हैं:
1. सूर्य नमस्कार (Sun Salutation) और योग
चिकित्सकीय लाभ: योग और सूर्य नमस्कार न केवल शरीर को लचीला और मजबूत बनाते हैं, बल्कि यह मानसिक शांति, तनाव से राहत, और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में भी सहायक होते हैं। योग से रक्त संचार में सुधार, पाचन में सुधार, और हृदय की सेहत में सुधार होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: योग और सूर्य नमस्कार से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। यह श्वसन और शारीरिक व्यायाम के माध्यम से ऑक्सीजन को पूरे शरीर में बेहतर तरीके से पहुँचाता है, जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है।
2. प्रातःकाल स्नान (Morning Bath)
चिकित्सकीय लाभ: प्रातः स्नान से शरीर ताजगी महसूस करता है, और यह दिनभर के कार्यों के लिए शरीर को स्फूर्ति प्रदान करता है। ठंडे पानी से स्नान करने से रक्त परिसंचरण में सुधार होता है और यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सुबह के समय स्नान करने से मांसपेशियों में तनाव कम होता है, शरीर की कोशिकाओं को सक्रियता मिलती है, और यह दिन भर मानसिक स्पष्टता बनाए रखने में मदद करता है।
3. मातृकुल और कुलदेवता पूजा
चिकित्सकीय लाभ: परिवार के साथ समय बिताना और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होना मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह तनाव को कम करता है और भावनात्मक संतुलन बनाए रखता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सामूहिक पूजा और अनुष्ठान से परिवार और समाज के सदस्यों के बीच आपसी संबंध मजबूत होते हैं, और इससे मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षा और अपनापन महसूस होता है।
4. तुलसी पूजा (Worship of Tulsi Plant)
चिकित्सकीय लाभ: तुलसी (Holy Basil) को औषधीय गुणों के लिए आयुर्वेद में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, और पाचन समस्याओं में लाभकारी होती है। तुलसी की पत्तियाँ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, और एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो शरीर को संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं। इसे घर में उगाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है।
5. हवन (Yagya)
चिकित्सकीय लाभ: हवन से वातावरण शुद्ध होता है। आयुर्वेद में हवन की प्रक्रिया से उत्पन्न धुएं को रोगाणु और विषाणु नाशक माना गया है। यह श्वसन संबंधी समस्याओं को कम करता है और हवा में फैले जीवाणुओं को नष्ट करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: हवन में प्रयोग होने वाली सामग्री जैसे गाय का घी, आम की लकड़ी, और औषधीय जड़ी-बूटियाँ वातावरण में हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने का कार्य करती हैं। हवन के धुएं से हवा की गुणवत्ता में सुधार होता है।
6. भोजन से पहले हाथ धोना और पाँव धोना
चिकित्सकीय लाभ: भोजन से पहले हाथ और पाँव धोने से शरीर से गंदगी और बैक्टीरिया दूर हो जाते हैं, जिससे संक्रमण और बीमारियों से बचाव होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: यह परंपरा हाइजीन और स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह खाने से पहले शरीर को साफ-सुथरा रखती है और भोजन के दौरान हानिकारक कीटाणुओं के प्रवेश को रोकती है।
7. चरण स्पर्श (Touching Feet of Elders)
चिकित्सकीय लाभ: चरण स्पर्श में झुकने से शरीर के अंगों में रक्त प्रवाह बेहतर होता है। इसके अलावा, यह विनम्रता और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: चरण स्पर्श करते समय सिर झुकता है, जिससे मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह तेज़ होता है और यह मानसिक शांति प्रदान करता है। यह प्रक्रिया ध्यान और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती है।
8. गायत्री मंत्र का उच्चारण
चिकित्सकीय लाभ: गायत्री मंत्र का नियमित जप मन और मस्तिष्क को शांत करता है। इसका प्रभाव तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है और यह तनाव को कम करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मंत्रों का उच्चारण शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और ध्वनि तरंगें मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इससे मानसिक स्पष्टता, ध्यान, और संतुलन बढ़ता है।
9. चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के दौरान उपवास
चिकित्सकीय लाभ: ग्रहण के दौरान भोजन न करने से शरीर को डिटॉक्स करने का समय मिलता है, और इस समय भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ग्रहण के समय वायुमंडल में बदलाव होते हैं, जिससे भोजन जल्दी दूषित हो सकता है। उपवास से शरीर को आराम मिलता है और पाचन तंत्र को सुधारा जा सकता है।
10. कर्णछेदन (Ear Piercing)
चिकित्सकीय लाभ: कर्णछेदन (कान छिदवाना) से शरीर में मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के कुछ बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मस्तिष्क का विकास और स्मरण शक्ति बेहतर होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कर्णछेदन का वैज्ञानिक आधार यह है कि कान के कुछ बिंदु तंत्रिकाओं से जुड़े होते हैं, जिन पर दबाव से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
सनातन धर्म की अनेक परंपराएँ केवल धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और चिकित्सा दृष्टिकोण से भी समाज के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुई हैं। ये परंपराएँ न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती हैं, बल्कि मानसिक शांति, सामंजस्य, और जीवन शैली में संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होती हैं।
पुराने समय से बहुत सी परंपराएं प्रचलित हैं, जिनका पालन आज भी काफी लोग कर रहे हैं। ये परंपराएं धर्म से जुड़ी दिखाई देती हैं, लेकिन इनके वैज्ञानिक कारण भी हैं। जो लोग इन परंपराओं को अपने जीवन में उतारते हैं, वे स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचे रहते हैं। यहां जानिए ऐसी ही चौदह प्रमुख परंपराएं, जिनका पालन अधिकतर परिवारों में किया जाता है…
1. एक ही गोत्र में शादी नहीं करना : - कई शोधों में ये बात सामने आई है कि व्यक्ति को जेनेटिक बीमारी न हो इसके लिए एक इलाज है ‘सेपरेशन ऑफ़ जींस’, यानी अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना चाहिए। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाते हैं और जींस से संबंधित बीमारियां जैसे कलर ब्लाईंडनेस आदि होने की संभावनाएं रहती हैं। संभवत: पुराने समय में ही जींस और डीएनए के बारे खोज कर ली गई थी और इसी कारण एक गोत्र में विवाह न करने की परंपरा बनाई गई।
2. कान छिदवाने की परंपरा : - स्त्री और पुरुषों, दोनों के लिए पुराने समय से ही कान छिदवाने की परंपरा चली आ रही है। हालांकि, आज पुरुष वर्ग में ये परंपरा मानने वालों की संख्या काफी कम हो गई है। इस परंपरा की वैज्ञानिक मानयता ये है कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है, बोली अच्छी होती है। कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित और व्यवस्थित रहता है। कान छिदवाने से एक्यूपंक्चर से होने वाले स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे छोटे बच्चों को नजर भी नहीं लगती है।
3. माथे पर तिलक लगाना : - स्त्री और पुरुष माथे पर कुमकुम, चंदन का तिलक लगाते हैं। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों आंखों के बीच में आज्ञा चक्र होता है। इसी चक्र स्थान पर तिलक लगाया जाता है। इस चक्र पर तिलक लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है। मन बेकार की बातों में उलझता नहीं है। तिलक लगाते समय उंगली या अंगूठे का जो दबाव बनता है, उससे माथे तक जाने वाली नसों का रक्त संचार व्यवस्थित होता है। रक्त कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं।
4. जमीन पर बैठकर भोजन करना : - जमीन पर बैठकर भोजन करना पाचन तंत्र और पेट के लिए बहुत फायदेमंद है। पालथी मारकर बैठना एक योग आसन है। इस अवस्था में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। पालथी मारकर भोजन करते समय दिमाग से एक संकेत पेट तक जाता है कि पेट भोजन ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाए। इस आसन में बैठने से गैस, कब्ज, अपच जैसी समस्याएं दूर रहती हैं।
5. हाथ जोड़कर नमस्ते करना : - हम जब भी किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते या नमस्कार करते हैं। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है नमस्ते करते समय सभी उंगलियों के शीर्ष आपस में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। हाथों की उंगलियों की नसों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से होता है। इस कारण उंगलियों पर दबाव पड़ता है तो इस एक्यूप्रेशर (दबाव) का सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है।
साथ ही, नमस्ते करने से सामने वाला व्यक्ति हम लंबे समय तक याद रह पाता है। इस संबंध में एक अन्य तर्क यह है कि जब हम हाथ मिलाकर अभिवादन करते है तो सामने वाले व्यक्ति के कीटाणु हम तक पहुंच सकते हैं। जबकि नमस्ते करने पर एक-दूसरे का शारीरिक रूप से संपर्क नहीं हो पाता है और बीमारी फैलाने वाले वायरस हम तक पहुंच नहीं पाते हैं।
6. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से : - धार्मिक कार्यक्रमों में भोजन की शुरुआत अक्सर मिर्च-मसाले वाले व्यंजन से होती है और भोजन का अंत मिठाई से होता है। इसका वैज्ञानिक तर्क यह है कि तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।
7. पीपल की पूजा : - आमतौर पर लोगों की मान्यता यह है कि पीपल की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसका एक तर्क यह है कि इसकी पूजा इसलिए की जाती है, ताकि हम वृक्षों की सुरक्षा और देखभाल करें और वृक्षों का सम्मान करें, उन्हें काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा वृक्ष है, जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ता है। इसीलिए अन्य वृक्षों की अपेक्षा इसका महत्व काफी अधिक बताया गया है।
8. दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना : - दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने पर बुरे सपने आते हैं। इसीलिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए। इसका वैज्ञानिक तर्क ये है कि जब हम उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर प्रवाहित होने लगता है। इससे दिमाग से संबंधित कोई बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। ब्लड प्रेशर भी असंतुतित हो सकता है। दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से ये परेशानियां नहीं होती हैं।
9. सूर्य की पूजा करना : - सुबह सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क ये है कि जल चढ़ाते समय पानी से आने वाली सूर्य की किरणें, जब आंखों हमारी में पहुंचती हैं तो आंखों की रोशनी अच्छी होती है। साथ ही, सुबह-सुबह की धूप भी हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होती है। शास्त्रों की मान्यता है कि सूर्य को जल चढ़ाने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलता है। कुंडली में सूर्य के अशुभ फल खत्म होते हैं।
10. चोटी रखना : - पुराने समय में सभी ऋषि-मुनी सिर पर चोटी रखते थे। आज भी कई लोग रखते हैं। इस संबंध में मान्यता है कि जिस जगह पर चोटी रखी जाती है, उस जगह दिमाग की सारी नसों का केंद्र होता है। यहां चोटी रहती है तो दिमाग स्थिर रहता है। क्रोध नहीं आता है और सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है। मानसिक मजबूती मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है।
11. व्रत रखना : - पूजा-पाठ, त्योहार या एकादशियों पर लोग व्रत रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार व्रत से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी, मधुमेह आदि रोग होने की संभावनाएं भी कम रहती हैं।
12. चरण स्पर्श करना : - किसी बड़े व्यक्ति से मिलते समय उसके चरण स्पर्श करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। यही संस्कार बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे भी बड़ों का आदर करें। इस परंपरा के संबंध में मान्यता है कि मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हमारे हाथों से सामने वाले पैरों तक पहुंचती है और बड़े व्यक्ति के पैरों से होते हुए उसके हाथों तक पहुंचती है। आशीर्वाद देते समय व्यक्ति चरण छूने वाले के सिर पर अपना हाथ रखता है, इससे हाथों से वह ऊर्जा पुन: हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है। इससे ऊर्जा का एक चक्र पूरा होता है।
13. मांग में सिंदूर लगाना : - विवाहित महिलाओं के लिए मांग में सिंदूर लगाना अनिवार्य परंपरा है। इस संबंध में तर्क यह है कि सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी (पारा- तरल धातु) होता है। इन तीनों का मिश्रण शरीर के ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है। इससे मानसिक तनाव भी कम होता है।
14. तुलसी की पूजा : - तुलसी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शांति रहती है। इसका तर्क यह है कि तुलसी के संपर्क से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। यदि घर में तुलसी होगी तो इसकी पत्तियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे कई बीमारियां दूर रहती हैं।