🚩♦️ पंचतत्व ♦️🚩
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| हमारा शरीर - #पांचतत्व-अग्नि , जल , पृथ्वी , वायु और आकाश का विज्ञान क्या है ? |
मित्रो आप जानते हैं, कि हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है।प्रस्तुत लेख में हम आपको इन्ही पांच तत्वों के बारे बतायेंगे,,,,
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥
पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है॥
प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है। सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है। यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है। जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक हो जाती है तो पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल हो सकता है अथवा बाढ़ आदि का प्रकोप अत्यधिक हो सकता है। आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को पंचतत्व का नाम दिया गया है।
माना जाता है कि मानव शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बना है। वास्तविकता में यह पंचतत्व मानव की पांच इन्द्रियों से संबंधित है। जीभ, नाक, कान, त्वचा और आँखें हमारी पांच इन्द्रियों का काम करती है। इन पंचतत्वों को पंचमहाभूत भी कहा गया है। इन पांचो तत्वों के स्वामी ग्रह, कारकत्व, अधिकार क्षेत्र आदि भी निर्धारित किए गये हैं।
आइए इनके विषय में जानने का प्रयास करें,,,
(1) आकाश – आकाश तत्व का स्वामी ग्रह गुरु है। आकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है। पृथ्वी के साथ्-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है। इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं।वात तथा कफ इसकी धातु हैं।
वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है। आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है। कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है। शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है।
वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है। वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इसलिए आकाश कहें या अवकाश कहें या रिक्त स्थान कहें, हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए। आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है।
(2) वायु – वायु तत्व के स्वामी ग्रह शनि हैं. इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है। इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है। वात इस तत्व की धातु है। यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई है। संभव है कि वायु अथवा वात का आवरण ही बाद में वातावरण कहलाया हो।
वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है। जीने और जलने के लिए आक्सीजन बहुत जरुरी है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं। व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है।
प्राचीन समय से ही विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं। वह है – शब्द तथा स्पर्श। स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है। संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है। वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं।
(3) अग्नि – सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी ग्रह माने गए हैं। अग्नि का कारकत्व रुप है. इसका अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है। इस तत्व की धातु पित्त है। हम्सभी जानते हैं कि सूर्य की अग्नि से ही धरती पर जीवन संभव है।
यदि सूर्य नहीं होगा तो चारों ओर सिवाय अंधकार के कुछ नहीं होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है। सूर्य पर जलने वाली अग्नि सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश देती है। इसी अग्नि के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं।
शब्द तथा स्पर्श के साथ रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है। रुप का संबंध नेत्रों से माना गया है। ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत अग्नि तत्व है। सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा हो या आणविक ऊर्जा हो या ऊष्मा ऊर्जा हो सभी का आधार अग्नि ही है। अग्नि के देवता सूर्य अथवा अग्नि को ही माना गया है।
(4) जल – चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है। इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनो ही हैं। इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है। इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है। क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है। कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है।
विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं। यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है। स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है। पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं। जल के बिना जीवन नहीं है। जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है।
हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं। जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है. मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है।
(5) पृथ्वी – पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है। इस तत्व का कारकत्व गंध है। इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है। इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं। विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है। इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है। संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है।
पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है। इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है। वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है। हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोएं क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है।
पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है।
उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है। जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है।
आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है। यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है। यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें।
पंचमहाभूत (पांच तत्व) का सिद्धांत भारतीय दर्शन और आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण आधार है। यह सिद्धांत कहता है कि हमारा शरीर और सृष्टि में हर चीज पाँच मूलभूत तत्वों से बनी है: अग्नि (आग), जल (पानी), पृथ्वी (मिट्टी), वायु (हवा), और आकाश (अंतरिक्ष)। यह तत्व एक-दूसरे के साथ मिलकर हमारी शारीरिक संरचना, मानसिक स्थिति और पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
पांच तत्व और उनका विज्ञान
1. अग्नि (Fire)
- प्राकृतिक गुण: गर्म, तेज, रूपांतरण करने वाला।
- शारीरिक भूमिका:
- पाचन शक्ति (अग्नि) को बनाए रखना।
- शरीर को ऊर्जा प्रदान करना।
- तापमान संतुलन।
- दृष्टि और प्रकाश का प्रतिनिधित्व।
- मन में प्रभाव:
- क्रोध, आत्मविश्वास, और दृढ़ता।
- सकारात्मक रूप में: प्रेरणा और उत्साह।
- नकारात्मक रूप में: अति आक्रामकता।
2. जल (Water)
- प्राकृतिक गुण: तरल, ठंडा, शांत करने वाला।
- शारीरिक भूमिका:
- शरीर का 70% हिस्सा जल है।
- कोशिकाओं का निर्माण और पोषण।
- रक्त और अन्य तरल पदार्थों को बनाए रखना।
- त्वचा को नमी और कोमलता देना।
- मन में प्रभाव:
- करुणा और संवेदनशीलता।
- सकारात्मक रूप में: स्नेह और प्यार।
- नकारात्मक रूप में: अति भावुकता।
3. पृथ्वी (Earth)
- प्राकृतिक गुण: स्थिर, ठोस, स्थायित्व।
- शारीरिक भूमिका:
- हड्डियों, मांसपेशियों, और त्वचा का निर्माण।
- शरीर की संरचना को स्थिरता प्रदान करना।
- मांस, वसा, और बाल का निर्माण।
- मन में प्रभाव:
- स्थिरता, धैर्य और अनुशासन।
- सकारात्मक रूप में: विश्वास और स्थिरता।
- नकारात्मक रूप में: जड़ता और आलस्य।
4. वायु (Air)
- प्राकृतिक गुण: हल्का, गति देने वाला, तरलता।
- शारीरिक भूमिका:
- सांस लेने की प्रक्रिया (प्राणवायु)।
- मांसपेशियों और नसों की गति।
- पाचन और रक्त परिसंचरण।
- मन में प्रभाव:
- रचनात्मकता और गति।
- सकारात्मक रूप में: सक्रियता।
- नकारात्मक रूप में: अस्थिरता और बेचैनी।
5. आकाश (Ether/Space)
- प्राकृतिक गुण: शून्यता, विस्तृत, हल्का।
- शारीरिक भूमिका:
- शरीर में हर कोशिका के बीच का स्थान।
- संचार और ध्वनि का प्रवाह।
- चेतना और मानसिक स्थिति।
- मन में प्रभाव:
- स्वतंत्रता और खुलेपन का अनुभव।
- सकारात्मक रूप में: शांति और संतुलन।
- नकारात्मक रूप में: अलगाव और अकेलापन।
पंचमहाभूत का शरीर विज्ञान में योगदान
- पंचतत्व शरीर के तीन प्रमुख दोषों (वात, पित्त, कफ) का आधार हैं।
- शरीर में इन तत्वों का असंतुलन बीमारियों का कारण बनता है।
- अग्नि: पित्त दोष।
- वायु और आकाश: वात दोष।
- जल और पृथ्वी: कफ दोष।
पंचमहाभूत को संतुलित करने के उपाय
1. अग्नि को संतुलित करने के लिए:
- मसालेदार और गर्म भोजन लें।
- प्राणायाम और सूर्य नमस्कार करें।
- सूर्य की रोशनी में समय बिताएं।
2. जल को संतुलित करने के लिए:
- पर्याप्त पानी पीएं।
- भावनाओं को नियंत्रित करें।
- ठंडे पेय पदार्थ और नमी युक्त खाद्य पदार्थ लें।
3. पृथ्वी को संतुलित करने के लिए:
- हरी सब्जियां और स्थिरता देने वाले खाद्य पदार्थ लें।
- ग्राउंडिंग एक्सरसाइज जैसे वज्रासन करें।
4. वायु को संतुलित करने के लिए:
- गहरी सांस लेने की प्रैक्टिस करें।
- हल्के और सुपाच्य भोजन लें।
- ध्यान और योग करें।
5. आकाश को संतुलित करने के लिए:
- ध्यान और मौन साधना करें।
- मन को शांत रखने के लिए सकारात्मक सोच अपनाएं।
- खुले और प्राकृतिक स्थानों में समय बिताएं।
पंचमहाभूत का आध्यात्मिक महत्व
आध्यात्मिक संतुलन:
- ये तत्व हमें सृष्टि और ब्रह्मांड से जोड़ते हैं।
- ध्यान और साधना से आत्मा की गहराई को समझने में मदद मिलती है।
सृष्टि का आधार:
- शरीर, मन और आत्मा का संयोजन पंचतत्व से होता है।
निष्कर्ष
पंचमहाभूत का विज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारे शरीर और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। इन तत्वों को संतुलित रखने से हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं। यह जीवन को संतुलित और आनंदमय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वैज्ञानिकों ने बताया कितना दिलचस्प है, हमारा शरीर 🕴🏻
1. जबरदस्त फेफड़े 🫁
हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.
2. ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं 🧰
हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.
3. लाखों किलोमीटर की यात्रा 🩸
इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.
4. धड़कन 🫀
एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.
5. सारे कैमरे और दूरबीनें फेल 👁️
इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.
6. नाक में एंयर कंडीशनर 👃🏻
हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.
7. 400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार 🧠
तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.
8. जबरदस्त मिश्रण 🍯
शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.
9. बेजोड़ छींक 😤
छींकते समय बाहर निकलने वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर छींक मारना नामुमकिन है.
10. बैक्टीरिया का गोदाम 👤
इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं.
11. ईएनटी की विचित्र दुनिया 🦻
आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.
12. दांत संभाल के 🦷
इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.
13. मुंह में नमी 👅
इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.
14. झपकती पलकें 🥺
वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.
15. नाखून भी कमाल के 👆
अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.
16. तेज रफ्तार दाढ़ी 🧔🏻
पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.
17. खाने का अंबार 😋
एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.
18. बाल गिरने से परेशान 👴🏻
एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.
19. सपनों की दुनिया 🤔
इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.
20. नींद का महत्व 😴
नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.
⏳ इस अनमोल विरासत का ध्यान रखें, अच्छा स्वास्थ्य ही परम धन है
😷 दूरी बनाए रखें, मास्क का प्रयोग करें। 🙏
ईश्वर का दिया हुआ यह हमारा शरीर हमारी अमूल्य धरोहर है इस का विशेष ख्याल रखे उचित खान पान नियमित प्राणायाम करे व्यसन से दूर रहे निरोगी जीवन जिये 🩺
#Health is wealth 🤾🏻♂️ 🙏🙏🌸🌸🙏🙏

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